Tuesday, July 29, 2008

बेटिया

उन्होंने एक ही रजाई में
अपने सुख दुःख बाटें है |
वाचलता से नही ,
एक दूसरे की सांसो से
एक ही रजाई में सोना,
उनका आपस में प्यार नही ,
उनकी मजबूरी थी |
क्योकि लड़कियों को हाथ पाँव पसारकर ,
सोने की अनुमति नही थी |
उनके उस घर (जो उनका कभी नही था )में ,
उनके दादा दादी ,पिताजी, चाचा,भाई सबका
बिस्तर पलंग प्रथक होता
सिर्फ़ थकी मांदी माँ और बेटियों का बिस्तर
साँझा होता था |
बिस्तर ही क्यो ?
उनके कपडे भी सांझे होते|

उनकी योग्यता ,उनकी प्रतिभा को
सदेव झिड्किया मिलती |
किनतु उन लड़कियों
ने अपने पूरे परिवार के लिए न जाने
कितने ही व्रत उपवास रखे
उनकी खुशहाली की कामना की |
क्योकि
वे उस परिवार की बेटिया थी..............

Friday, July 25, 2008

पहचान

मुझे निष्क्रिय करने वालो
तुम भी अछूते न रहे
मझे छोड़ लापरवाही से ,
तुम खुश रहे |
किनतु कुछ बच्चो ने टूटा खिलौना समझ मुझे उठा लिया |
मेरे अन्दर की बारूद को नन्हे हाथो से रंगकर ,
कई दिनों तक रस्सी बांधकर झूलते रहें, खेलते रहें ,झूमते रहे ,
खुशिया मनाते रहें |
और मै अपना अस्तित्व भूल गया |
फ़िर बच्चे मुझसे उब गये
टूटे खिलोने की भरी टोकरी में ,
मै भी सम्मिलित हो गया |
मेरा बारूद फ़िर बिखरने लगा |
उसके कण कण हवा में उड़ने लगे ,
उनरंग बिरंगे कणों को देखकर मै तम्हें धन्यवाद देता हुँ
की इस" बम्" को तुमने
सही पहचान दे दी |

सावन



सावन के महीने में झूमी डाली डाली है



धरती की हरियाली से आंखे हाली -हाली है
तेरे प्रेम के संदेश से चारो और फेली खुशियाली है
नदियों के कलकल ने संगीत बिखेरा है
कोयल की कुक ने कोमल राग छेड़ा है
हिरनियों ने जंगल को ख्न्गोला है
आज पर्वतों ने भी धानी चुनर को ओढा है


पंछियो ने नीडो को घेरा है
किसान ने अपने बेलो को खोला है


रे मन,तू फ़िर क्यों अकेला है
ये सब क्या तेरे मीत नही ?
आ उस मीत से मिलने की आस में ,
इन मीतो के साथ हो जा
ये तुझे जीवन का ज्ञान देगे
और मीत से मिलने की पहचान देगे
तेरा मीत है उन्नति के शिखर पर
तेरी पुकार उसे अटल रखेगी और
यही तेरे प्रेम की जीत होगी \
से मिलने की पहचान दे |

Wednesday, July 23, 2008

कागज के फुल


शब्दों के पाँव नही होते ,
भावनाओं के बल पर चलते है
संवादों की आहट नही होती ,फ़िर भी बरसते रहते है
अहसासों की प्रतिद्वंदिता में ,
जीवन स्पन्दित होने लगा है
मुसुक्राहते केमरे की केद होकर रह गई है
जीवन के स्थपित मूल्य दिखावा बनकर रह गये है
करेले को शक्र की चाशनी चढाकर ,
परोसने में माहिर हो गये है
नेस्र्गिक फुल अब हमारे बस में नही ,
बेजान फूलों को सजाने में,
अपनी क्षमता का दोहन क्र रहे है

Monday, July 21, 2008

बादलो की सैर




केरल यात्रा के दोरान प्रकर्ति का अतिशय सुंदर रूप देखा ,उसी को शब्दों में ढलने की एक छोटीसी कोशिश की है
रोम रोम पुलकित हुआ जब बादलो से रूबरू हुए
हर दिल हर साँस हमारी खुशबु हुए
आज बादलो का मेला है
बादलो ने ही खेल खेला है





आसमान से उतरकर मेरे आँगन में ,बसेरा डाला है
आज वो रुई का रूप लेकर आए है
कभी पेडो के साथ ,कभी पोंधो के साथ
आँख मिचोली करते मेरे पास मचले है
मचलते हुए मुझे आगोश में लेकर
अपनी कोमलता का अहसास कराकर
मुझसे विदा लेकर
उपर से उपर उठते हुए
पुनः आसमान में विलीन हो गये
और धुप के एक टुकड़े ने
उन्हें और चमकीला बना दिया है

रिश्ते

तार तार रिश्ती को आजमहसूस किया|
मेने बार बार सिने की कोशिश मै
अपने हाथो में सुई भी चुभोई|
किनतु रिशतों की चादर और जर्जर होती गई
क्या उसे फेंकू ?या संदूक मै रखू ?
सोचती रही भावना शून्य क्या सच है ?
कितनी ही बार का भावना शून्य व्यवहार
मानस पटल पर अंकित हो गया
चादर तार तार ज्रूर थी पर उसके रंग गहरे थे |
और उन रंगो ने मुझे फ़िर
भावना की गर्माहट दी
और मै पुनः उन रंगों को पुकारने लगी |
उन पर होने लगी फ़िर से आकर्षित
उस चादर को फ़िर से सहेजा ,
और उनमे खुश्बू भी ढूंढने लगी
और उस खुशबू ने मुझे
ममता का अहसास दे दिया
और मेने चादर को फ़िर सहलाकर
सहेजकर रख दिया|
रिशतों की महक को महकने के लिए |

सीढिया

क्विता
सीढिया कभी बढ़ती नही ,वो स्थिर रहती है |
उन्हें तक़लीफ होती है तो वे दर्द बाँट नही सकती |
दर्द बाँटने जाती है तो और दर्द मिलता है |
सीढियों का काम सिर्फ़ चढाना होता है|
मंजिल पर पहुचाने का कम वो बखूबी करती है |
वो तो देख भी नही पाती i की उनका राही कहा पहुंचा है
सिर्फ़ उतरने की पदचाप से राही का अंतर्मन पहचानती है|
उन्हें सुस्ताने को जगह देती है |
फिर से नये राही को पहचानती है और अटल रहती है |
,

Sunday, July 20, 2008

स्पंदन


राधा का अर्थ है ...मोक्ष की प्राप्ति
'रा' का अर्थ है 'मोक्ष' और 'ध' का अर्थ है 'प्राप्ति'
कृष्ण जब वृन्दावन से मथुरा गए,तब से उनके जीवन में एक पल भी विश्राम नही था|
उन्होंने आतताइयों से प्रजा की रक्षा की, राजाओं को उनके लुटे हुए राज्य वापिस दिलवाये और सोलह हज़ार स्त्रियों को उनके स्त्रीत्व की गरिमा प्रदान ki
उन्होंने अन्य कईं जन हित कार्यों में अपने जीवन का उत्सर्ग किया उन्होंने कोई चमत्कार करके लड़ाइयाँ नही जीती,अपनी बुद्धि योग और ज्ञान के आधार पर जीवन को सार्थक किया मनुष्य का जन्म लेकर , मानवता की...उसके अधिकारों की सदैव रक्षा की
वे जीवन भर चलते रहे , कभी भी स्थिर नही रहेजहाँ उनकी पुकार हुई,वे सहायता जुटाते रहे|

इधर जब से कृष्ण वृन्दावन से गए, गोपियान्न और राधा तो मानो अपना अस्तित्व ही को चुकी थी
राधा ने कृष्ण के वियोग में अपनी सुधबुध ही खो दी,मानो उनके प्राण ही न हो केवल काया मात्र रह गई थी
राधा को वियोगिनी देख कर ,कितने ही महान कवियों ने ,लेखको ने राधा के पक्ष में कान्हा को निर्मोही आदि संज्ञाओं की उपाधि दी
दे भी क्यूँ न????
राधा का प्रेम ही ऐसा अलौकिक था...उसकी साक्षी थी यमुना जी की लहरें , वृन्दावन की वे कुंजन गलियां , वो कदम्ब का पेड़, वो गोधुली बेला जब श्याम गायें चरा कर वापिस आते थे , वो मुरली की स्वर लहरी जो सदैव वह की हवाओं में विद्यमान रहती हैराधा जो वनों में भटकती ,कृष्ण कृष्ण पुकारती,अपने प्रेम को अमर बनाती,उसकी पुकार सुन कर भी ,कृष्ण ने एक बार भी पलट कर पीछे नही देखा ...तो क्यूँ न वो निर्मोही एवं कठोर हृदय कहलाये ,किन्तु कृष्ण के हृदय का स्पंदन किसी ने नही सुना स्वयं कृष्ण को कहा कभी समय मिला की वो अपने हृदये की बात..मन की बात सुन सकेंया फिर यह उनका अभिनय था!


जब अपने ही कुटुंब से व्यथित हो कर प्रभास -क्षत्र में लेट कर चिंतन कर रहे थे तो 'जरा' के छोडे तीर की चुभन महसूस हुई तभी उन्होंने देहोत्सर्ग करते हुए ,'राधा' शब्द का उछारण किया,जिसे 'जरा' ने सुना और 'उद्धव' को जो उसी समय वह पहुंचे..उन्हें सुनायाउद्धव की आंखों से आंसू लगता बहते जा रहे हैं ,सभी लोगों ,अर्जुन ,मथुरा आदि लोगो को कृष्ण का संदेश देने के बाद ,जब उद्धव ,राधा के पास पहुंचे ,तो वे केवल इतना कह सके ---
" राधा, कान्हा तो सारे संसार के थे ...
किन्तु राधा तो केवल कृष्ण के हृदय में थी"

कविता का शीर्षक आप सुझाइये'"खोज "

एक राहगीर अमराई में, आम ढूंड रहा था
एक शिक्षक कक्षा में, खास ढूंड रहा था
आम तो दलालों ने पकने रख दिए ,
और खास तो मोबाइल में व्यस्त हो गए|

एक मचुअरा तालाब में मछली ढूंड रहा था
एक पंडित मन्दिर में मूर्ति ढूंड रहा था,
तालाब की मछली ठेकेदार ले गए
और मन्दिर की मूर्ति विढेशी ले गए |

एक धार्मिक सत्संग में धर्म खोज रहा था
एक भूखा लंगर में रोटी खोज रहा था,
धर्म तो प्रवचन और कथाओं में घूम हो गया
रोटी तो चलते चलते दिल्ली पहुँच गई |

एक साधू जुनगले में शान्ति धुंध रहा था
और में टीवी समाचार में , समाचार खोज रही थी,
साधू की शान्ति तोह पर्यटक ले गए
और मैं समाचार सुनकर मुर्छित हो गई||
आस्था ने बहुत सुंदर शीर्षक भेजा है
तो कविता का शीर्षक है ,
"खोज "
धन्यवाद आस्था

Wednesday, July 16, 2008

सुखद अनुभूति

मेरे जीवन की सुखद अनुभूति प्रथम दर्शन शिर्डी के सई बाबा मंदिर में थी|