Thursday, August 14, 2008

लोकतंत्र

राजा लोंगो का तो राज पाट चला गया किंतु हमारी मानसिकता आज भी राजा जैसी ही है ,फर्क इतना है पहले एक राजा होता था आज तो हर कोई राजा बननेको बेताब है ,इसका ताजा उदाहारण है ,ओलम्पिक में गोल्ड मैडल जीतने वाले श्री अभिनव बिंद्रा परहर राज्य द्वारा दिए गये इनाम की घोषणा ,बेशक अभिनव बिंद्रा ने गोल्ड मैडल जीतकर भारत का विशव में गोंरव बढाया है, इसमे कोई संदेह नही वे सारे भारतवासियों की बधाई के पात्र है,परन्तु इसमे उनकी अपनी ख़ुद की लग्न ,मेहनत ,उनके पिता द्वारा शूटिंग के प्रशिक्षण के लिए दी गई सुविधा का महत्वपूरण योगदान है ,किनतु हमारे राजाओ को तो बहती गंगा में हाथ धोने का अवसर मिल गया| राजा अपना अस्तित्व बनाये रखने के लिए कभी दाई को कभी नर्तकी को ,कभी कोई चित्रकार को उसी समय अपने गले से मोतियों कीमाला उतारकर दे देते थे , आज के राजा क्यो नही अपनी चेन , अगुठी या महंगी घड़ी उतारकर विजेताओ को दे देते ? वो तो जनता की गाढी कमाईका पैसा ,यु ही लुटा देते है अपनी वाहवाही बटोरने के लिए | जबकि ख़ुद इनाम लेने वालो का मंतव्य है की उस पैसे से और खिलाडियों को अच्छे से अच्छा प्रशिक्षण देकर आने वाले सालों के लिए तैयार किया जा सके लेकिन नही ?हम तो राजा है, लोकतंत्र के| हम अपनी वस्तु केसे दे सकते है हम तो जनता के सेवक है ,हमारा क्या?जो कुछ है जनता का है ,तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा\और हम तुम जनता ,टी वि पर या अख़बार में समाचार पढ़ लेते है आपस में बैठकर मिडिया को कोस लेते है,थोडीदेर अख़बार घडी करके रख देते है या फ़िर टी वि का चैनल बदल देते है ,फ़िर जब कोई विज्ञापन आता
है तो फ़िर से चैनल बदलकर फ़िर से तन्मयता से सनसनी सी खबर देखने बैठ जाते है और कह देते अरे भाई लोकतंत्र है सब कुछ चलता है |

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