Friday, January 23, 2009

गणतंत्र दिवस और आम आदमी



लो फ़िर २६ जनवरी .गणतंत्र दिवस आ गया .सारा मिडिया देशभक्ति के रस में डूब गया ,चाहे वो टेलीविजन हो अख़बार हो या फ़िर इंटर नैट हो हर जगह देश प्रेम की लहर छाई हुई है |नेता लोग अपने सफेद कपडो की सफाई और उन्हें कड़कदार बनने में लगे हुए है ,तो सड़क पर प्लास्टिक के झंडे बेचने वाले (आम दिन वो लोग भीख मागते है )एक दिन की मेहनत की कमाकर अपने को देशभक्त समझकर खुश होते है | माइकऔर लाउड स्पीकर पर गिने चुने फिल्मी देशभक्ति गीतों के कैसेट और सीडिया बजने को आतुर है की चलो हमे कम से कम साल में दो बार तो बजाया जाता है |
सरकारी स्कूल के शिक्षको को इस एक दिन के भय से अपनी नोकरी बचाने की चिंता खाए जा रही है |हर कोई अपने अपने स्वार्थ के चलते इस एक दिन को शिद्दत से याद करते है ,और २७ जनवरी को चैन की साँस लेते है|
आजकल अखबारों में क्रांतिकारियों के संस्मरण पढ़कर उनकी देश के प्रति सच्ची श्रधा देखकर उन के प्रति मै श्रधा से नत मस्तक हुँ .जिन्होंने अपना सर्वस्व त्यागकर देश को बरसों की गुलामी से आजाद कराया.

आज हर कोई के मन में ये बात चुभती है की देश भक्ति का वो जज्बा कहा गया जब महात्मा गाँधी .सुभाषचंद्र बोस शहीद भगतसिंग ,चंद्रशेखर आजाद जैसे नेताओ की एक आवाज पर देश के लिए अपने प्राण न्योच्छावर करने के लिए लोग घरो से निकल पड़ते थे
आज हमारा देशप्रेम एक दिन में ही सिमट कर रह गया है या यो कहिये एक रस्म बनकर रहा गया है |आजादी के कुछ सालो तक कुछ ठीक था ,फ़िर हर आदमी सोचने लगा हमे आजादी मिली है अब तो हम स्वतंत्र है सब कुछ करने के लिए और उसने उसे व्यक्तिगत स्वतन्त्रता मानकर मन माने ढंग से जीवन शैली अपना ली |मर्यादाए ,नैतिकता सत्य्प्रय्नता ,आचरण की पवित्रता ये सब उसके निजी सुख में आडे आने लगे |उसके अन्तर में , सत्ता करने और भोगने की सोई हुई लालसा जाग उठी और दिशाहीन होकर येन केन प्रकारेण नेता बनने के सपने देखने लगा
पार्टिया बनती गई नेता बनते गये ,एक पार्टी से अनेक राजनितिक पार्टी एक नेता से अनेक राज करने वाले नेता इसी तरह अपने सगे सब्न्धियो का दायरा बढाते गये ||सगे सबंधी अगर उनके खिलाफ आवाज उठाते तो उनके ऊपर भी गाज गिरती इसलिए वे भी सत्ता के सुख का चरनामृत ले तृप्त होते रहे और अपने दिलो में सुख साधनों से वंचित होने का भय लेकरजीते हुए देशप्रेम को रस्म बनाते रहे |दूसरी तरफ़ जो लोग इन राजनितिक पार्टी अधिकारिक लोगो की पार्टी में शामिल नही हो हो सके वो गुरुओ (तथाकथित )की अलग अलग टोलियों में शामिल हो गये और अपने काम उनके द्वारा निकलवाकर हाथ जोड़कर प्रवचन सुनने और कीर्तन करने लगे |
और आम जनता अपने सीने में देशप्रेम का जज्बा लिए कर्म को अपना सेतु मानकर मौन किंकर्तव्य वि मूढ़ सी अनवरत चलती जा रही है |
रास्ते उनके लिए रुके है ,
जो चलना जानते है |
जो सीना तानकर चलते है ,
वृक्ष उनके लिए तने है |
जय भारत




3 टिप्पणियाँ:

Anonymous said...

shobhnaji,aapki rachana padhi bahut achi lagi aapki rachana ke sabhi vishy man ko chu lane wali lagi .....kmana mumbai.

Anonymous said...

shobhnaji,aapki rachana padhi bahut achi lagi aapki rachana ke sabhi vishy man ko chu lane wali lagi .....kmana mumbai.

Anonymous said...

shobhnaji,aapki rachana padhi bahut achi lagi aapki rachana ke sabhi vishy man ko chu lane wali lagi .....kmana mumbai.