Wednesday, June 30, 2010

सरपंच पत्नी ,सरपंच पति

आज के २० साल पहले जब उनके पति सरपंच थे ,तब भी वो आगंतुको को दिन भर चाय नाश्ता करवाती थी और आज
जब ५८ साल की उम्र में खुद सरपंच है तब भी आगंतुको को खुद ही चाय और नाश्ता बनाकर प्रेम से खिलाती है |
अभी
कुछ दिन पहले अपने

गाँव गये अब ऐसे ही तो गाँव चले नहीं गये ?दिन रात ब्लॉग पर गाँवो की पोस्ट पढ़कर और टी.वी .पर "देसी गर्ल "देखकर हम अपने आप को रोक नहीं पाए |भरी तपती दोपहरी में ठसाठस भरी बस से जब गाँव के बाहर उतरे तो गाँव आने का का उत्साह थोडा ठंडा पड़ने लगा था पर बड़े बड़े नीम के ,बड़ के पेड़ देखकर मन प्रसन्न हो गया |
साथ की उसके नीचे लगी पान की गुमटिया जिनमे पान तो कम ,पर कई प्रकार के पान मसालों के पाउच की लम्बी लम्बी लडिया देखकर मन में कुछ खटक गया !हम ये सोचते ,जब तक देखा पतिदेव घर की पीछे वाली गली के मुहाने तक पहुँच गये चुके थे |मुझे हमेशा गुस्सा आता है वो उबड खाबड़ रास्ते से ही ले जाते अब तो आगे वाली गली भी पक्की बन गई ?फिर क्यों पीछे से जाना ?हमेशा उनका तर्क रहता सभी लोग ओटलो पर बैठे रहते है उन्हें अच्छा नहीं लगता |वैसे तो उन्हें गाँव जाना जरा कम ही पसंद है मेरी जिद के आगे ज्यादा ना नुकुर नहीं कर पाए बेचारे !(वैसे इतने भी बेचारे नहीं है वो)घर पहुंचे तो माताजी को छोड़ और कोई बहुत खुश नहीं था उन्हें मालूम है दो चार दिन के लिए आये है बड़ी बड़ी बाते करेगे चले जायेगे |उन्हें तो यही रहना है १६ घंटे बिजली कटौती का सामना करना है ,बीज ,खाद ,सरकारी तय की हुई कीमत के बावजूद ब्लैक में लेना है |वैसे भी मानसून आज कल करते १५ दिन निकाल ही चुका है |फिर भी "अतिथि देवो भव "खातिरदारी तो करनी ही है |हम कहते ही रह जाते जैसी तुम्हारी दिनचर्या ,खानपान है सोना उठाना बैठना है हम भी उसी में शामिल हो जायेगे कितु वो हरपल ये "जताते "की आप हमारे मेहमान हो और हमको ये समझना चहिये की मेहमानों को कितने दिन और कैसे रहना चाहिए ?
साँझ को आँगन में खाट पर बैठना और बिजली के अभाव में सबका साथ ही आंगन में भोजन करना अलग ही आनन्दानुभूति दे गया |रात में खुले आसमान में चाँद तारो को निहारना कभी बंद ना हो !बस ऐसे ही लगता रहा|
कभी बदली चाँद को पूरा ढँक लेती कितु चाँद की रौशनी में बदली का रंग कुंदन सा होगया |और बदली चाँद की आभा लिए आगे बढ़ गई और चाँद ने अपनी रौशनी तेज कर दी और चांदनी में पूरा गाँव नहा उठा |
दुसरे दिन सुबह सुबह ही पडोस वाली भाभी आ गई भैया इनके बचपन के मित्र है जितने दिन ये गाँव में रहते खाने के आलावा सारा दिन इनका उन्ही के साथ गुजरता |
अरे !तुम तो कल ही आ गई थी मै जरा शहर गई थी ब्लाक ऑफिस में वहां मीटिंग थी |
मैंने उन्हें सरपंच बनने पर बधाई दी |धन्यवाद कहते हुए ख़ुशी और निराशा के मिश्रित भाव आये और चले गये |
चलो चाय पीने ?भाभी ने कहा -
मैंने माताजी की तरफ देखा ,माताजी ने कहा -जाओ ,जाओ सरपंच बुला रही है ?उनकी स्वीकृति में एक तरह से व्यग्य था |
मै उनके साथ ही चल दी |हाल समाचार पूछने के बाद मैंने उनसे पूछा ?
आजकल तो आप बहुत व्यस्त रहती होगी सरपंच को तो कितने काम होते है ?मैंने अपना ज्ञान बघारा ?
कितनीही सरकारी योजनाये है हम आये दिन अख़बार में पढ़ते है अब तो गाँव में बहुत विकास हुआ होगा ?हम दोनों साथ ही रसोई में आये |रसोई में शहरी रसोई का आभास था | स्टील के बर्तन ,बिजली के रसोई उपकरण गैस का चूल्हा सब आधुनिक वस्तुए पारम्परिक वस्तुओ का स्थान ले चुकी थी |
इतने में ही भैया भी आ गये |
एक कान से ,बिलकुल भी सुनाई नहीं देता , दुसरे में मशीन लगी है \एक आँख का मोतियाबिंद का आपरेशन हो चुका है
कुशल क्षेम पूछने के बाद उन्होंने भाभी को फरमान जारी किया -पड़ोसी गाँव के पटवारी और शहर से अधिकारी आये है नाश्ता चाय जल्दी भिजवा देना |भाभी ने जल्दी से पोहे धोये और प्याज काटने लगी |
मैंने कहा - लाइए मै कर देती हूँ ,आपने कोई सहायक नहीं रखा?
अरे
!यहाँ गाँव में घरेलू काम के लिए कोई भी नहीं मिलता |और जो भी मिलते है १०० रूपये रोज मांगते है जितनी भी योजनाये चल रही है मजदूरों की मजदूरी १०० रूपये ही निर्धारित है ,अगर कुछ भी काम करवाना हो तो इतना ही देना पड़ता है ||घर में पड़े पड़े खाट तोड़ते रहेगे पर काम नहीं करेगे |
आप लोग तो शहर में रहने चले गये थे ?गोपाल और बहू के पास ?फिर क्यों वापिस आ गये और फिर आपका सरपंच बनना |सालो पहले भैया ने जो काम किये थे अब तो उनके अवशेष ही नजर आते है जैसे की गोबर गैस प्लान |बिजली के कनेक्शन आदि |
कहाँ ?अब तो लोगो ने मीटर ही कटवा दिए है डायरेक्ट पोल से बिजली लेलेते है |
पीने के पानी के कुछ निम्नतम रूपये लेते थे पिछले चुनाव में जो सरपंच ने वादा किया था इसलिए वो भी अब मुफ्त में मिलता है |सरकार ने सब कुछ मुफ्त में देकर इन सबकी आदत बिगाड़ दी है |
इतने में ही पोहे तैयार हो गये उन्होंने अपने छोटे बेटे बनवारी को आवाज दी, और कहा -ये नाश्ता लेजा |
बनवारी जिसे बचपन में तेज बुखार आया और उसके बाद से ही वो अपना मानसिक संतुलन खो बैठा था ,बस घर के छोटे मोटे काम कर देता है और दिन भर बाहर घूमता रहता है |
आप पंचायत भवन में नहीं बैठती ?
नही !तुम्हारे भैया ही सब काम देखते है मै तो दस्तखत भर करती हूँ |

मै अपने घर आ गई |शाम को नदी तरफ घूमने गये रास्ते में एक बड़ा सा चूहा मरा पड़ा था |"सरपंच पति "मरा चूहा फेंकने वाले से मोल भाव कर रहे थे, वो किसी भी तरह ५०० रूपये से कम में नहीं मान रहा था |अब पंचायत में इसका कोई बजट तो नहीं था |
आखिर वो ये रूपये कहाँ से लायेगे ?
कोनसी योजना से ?
और क्या राजनीती में इतना आकर्षण है ?


क्या हम लेखो ,आलेखों ,कविताओ से अपने गाँवो की नैसर्गिक तस्वीर फिर से बना सकते है ?




Tuesday, June 29, 2010

पिछड़ापन

विचार तो बहुत से मन में आ रहे है, पर अपनी ही व्यस्तताओ में उन्हें शब्द नहीं दे पा रही हूँ तो आज मेरी ही एक पुरानी पोस्ट फिर से पोस्ट कर रही हूँ |

उनमे कोई न कोई
कहानी जीवित है ,
इसीलिए
खंडहर सदा आकर्षित
करते रहे
मुझे

मेरी सांसो में
बस जाते है
लिपे पुते मिटटी के घर
क्योकि
जीवंत खुशबू
दे जाते है मुझे |

फिसलते चिकने फर्श
उदासी भर देते है
तो,
रूमानियत उत भर देते है
खुरदुरे फर्श मुझे |


चमकते माल्स के
दमघोटू वातावरण
से दूर
नुक्कड़ का
"हाट "
नई ताजगी दे जाता है
मुझे |

सितारों से जडी साडी
चुभती है नजरो को
मलमल की छींट
सभ्यता समझा
जाती है
मुझे |

मंदिरों की दान पेटी ,
पुजारी की आरती
मेरे इमान को डिगा देती है
तो ,
पास ही झोंपडी में
साँझ को जलता
छोटा सा दीपक
नतमस्तक होने पर विवश
कर देता है
मुझे |

गुरुओ की "दीक्षा और "प्रवचन "
बिच्छू सा डंक देते है मुझे
तो मेरे सहयोगी की कर्मठता
जीवन का सत्य
सिखा देती है
मुझे |

भोजन का बाजार
कितना भी स्वादिष्ट हो
त्रप्ति दे जाती है
मोटे से आटे की रोटी
मुझे |

तथा कथित
आधुनिकता की दौड़ में
बहुत पीछे हूँ मै ,
पर
अंतरजाल की सामाजिकता
शांति दे जाती है
मुझे .......................




'

Thursday, June 17, 2010

आओ धरती में बीज डाल दे

आषाढ़ की पहली
बदली बरस चुकी है
कृषक की आस
जाग चुकी है |
आओ बुवाई कर ले
सद्य नहाये खेत में|

नन्ही बिटिया
श्री गणेश
करने को है
आतुर
सौंधी माटी की
सन्देश की


दादी बैठी है
खाट पर ,खेत में

नन्हा छोटू
बैठा है हाथ में
दाने लेकर
दादी की गोद में ,
अपनी बारी का
इंतजार करता हुआ

भैया बैठा है
कुए की परेल पर
हाथ में मोबाईल लिए

आओ कोयल
अपना राग सुना जाओ
मेंढक तुम दूर हट जाओ

माँ घर में
मीठा बनाकर
इन्द्र देवता से
प्रार्थना कर रही है |

दादा ने बाबू को
नारियल दिया
बाबूजी ने
देवता को नमन किया
नारियल का पानी
माटी भिगो गया
और बुवाई का
श्री गणेश हो गया|

Tuesday, June 15, 2010

"चतुर चिड़िया '

अभी कुछ तीन चार दिन पहले चंद्रभूषण जी के ब्लाग " पहलू "पर "सुनो ,चिड़िया कुछ कहती है "बहुत ही प्यारा सा
और पक्षियों के बारे में बहुत कहता बहुत सुन्दर आलेख पढ़ा |और वाही मैंने एक टिप्पणी दी थी |

बहुत अच्छी पोस्ट |आपकी पोस्ट पढ़कर मै रूक नहीं पाईऔर लिख रही हूँ |मै इंदौर में रहती हूँ और यः पर भी करीब करीब गोरेया विलुप्त ही होती जा रही है |तीन चार साल पहले मैंने वैभव लक्ष्मी के व्रत किये थे उसमे जो पूजा के चावल होते है वि चिड़िया या और कोई पक्षी को खिलाने का कहा गया है प़र हमारे यहाँ प़र कोई पक्षी नहीं आता था , सो मै चावल हर शुक्रवार के एकत्रित कर मेरी छोटी बहन को दे देती जो दुसरे शहर में रहती है |अपने छोटे से बगीचे में चिडियों के लिए रोज पानी रखती हूँ और सौभाग्य से रोज सुबह करीब चार पांच महीने से रोज एक चिड़िया ठीक सवा सात बजे सुबह आती है पानी पीती है मुश्किल से एक मिनट घुमती है और फुर्र्र्र हो जाती है मुझे यही देखने में आनंद आता है मेरा आनंद का कोई ठिकाना नहीं है अभी तीन दिन से उसी चिड़िया के साथ एक चिड़िया और आने लगी है |शायद टिप्पणी ज्यादा लम्बी हो गई है |
धन्यवाद

और इसी पोस्ट से मुझे बचपन में सुनी अपने दादाजी की ये कहानी याद हो आई |

"चतुर चिड़िया "

एक चिड़िया एक दिन बरसात से भरे डबरे (कीचड )में गिर गई उसके पंखो पर कीचड लगने से वो उसमे से बाहेर नहीं निकल पा रही थी |सुबह सुबह का समय था |इतने में वहां से गायो को चराने वाला अपनी गायो को लेकर जा रहा था तो चिड़िया बोली -ओ गाय वाले भैया मुझे निकाल दो ?

गाय वाला भैया बोला -तुझे निकालूँगा तो मेरी गायें भाग जाएगी और फंसी हुई चिड़िया को देखकर हाथ में लाठी लेकर हँसता हुआ वहां से चला गया |

फिर वहां से भैस चराने वाला ,बकरी चराने वाले निकले सभी गाय वाले भाई की तरह वहां से निकल लिए |

बच्चो की जिद पर कहनी को बढ़ाने के चक्कर में दादाजी सभी भाइयो का जवाब विस्तार से और पशुओ पक्षियों की बोली निकलकर विस्तार बताते |

जब तक चिड़िया गड्ढे में ही फसी रहती ( अच्छा हुआ तब टेलीविजन के चैनल वाले नहीं थे नहीं तो ब्रेकिंग न्यूज बन जाती )|

वो अभी भी मनुहार कर रही थी निकलने के लिए -इतने में उधर से एक बिल्ली मौसी निकली आज उन्हें कही दूध नहीं मिला था -|

चिड़िया ने उससे विनती की -बिल्ली मौसी ,बिल्ली मौसी मुझे निकाल दो ...........

बिल्ली मन ही मन खुश आज तो मुझे बैठे बिठाये बढ़िया भोजन मिल गया |

फिर बिल्ली मौसी को कोई काम भी तो नहीं था ?

पहले तो उसने नखरे दिखाए तुझे कैसे निकालू ?

मै कीचड में भर जाउंगी .मेरे हाथ गंदे हो जायेगे आदि आदि ...

फिर चिड़िया की विनती पर पसीजने का नाटक करते हुए कहने लगी -

तुझे एक शर्त पर निकलूंगी ?

वो क्या ? बिल्ली ने पूछा ?

मै तुझे निकालूंगी तो सही पर तुझे खा जाउंगी |

अच्छा खा लेना |पहले मुझे निकाल ,फिर मुझे पानी में धोना कीचड़ भरी ही खा जाओगी क्या ?

मै जब अच्छी तरह से साफ हो जाऊ तुम मुझे खा लेना |

अच्छा !कहा !बिल्ली मौसी ने ,और दावत की ख़ुशी में बड़े उत्साह से चिड़िया को निकाला उस डबरे से ,

पास की एक छोटी सी नदी थी उसमे नहलाया और फिर पानी के बाहर निकाल लिया और सुस्ताने बैठ गई जरा सा ?

इतने में तो जैसे ही चिड़िया के थोड़े से पंख सूखे वह फुर्र से उड़कर वहां नदी किनारे लगे पेड़ पर जा बैठी |

बिल्ली मौसी के तो होश उड़ गये वो नीचे से उसे टकटकी लगाये देखती रही |

और चिड़िया पेड़ पर बैठी बैठी बोली बिल्ली मौसी से -

टुकुर मुकुर क्या देखती -पहले तो खाया नहीं ??

और चिड़िया रानी एक डाली से दूसरी ,दूसरी से तीसरी पर फुदकने लगी .....



Tuesday, June 08, 2010

"सवेदनाओ की राख "लघु कथा

प्रोफ़ेसर साहब के घर में आज सुबह से ही बधाइयों के फोन पर फोन आ रहे थे घर में जितने मोबाईल थे बारी बारी से बजे जा रहे थे |
प्रोफ़ेसर साहब की पत्नी भी सबको हंस हंस कर धन्यवाद दे रही थी |शीना के पास बैठकर इंतजार करने के आलावा और कोई रास्ता नहीं था ...उसे भी तो आज ही टी वि पर ब्रेकिंग न्यूज में ये खबर दिखानी है |
इसी बीच एक आठ से १० साल के बीच का एक बच्चा उसके सामने चाय की ट्रे रखकर चला गया |
तभी प्रोफ़ेसर साहब भी सामने आकर बैठ गये सूट बूट में -पूछिए आपको क्या पूछना है ?
शीना ने भी अपने केमेरा मेन राकेश को अलर्ट किया औरप्रोफ़ेसर साहब से पूछने लगी ?
शीना -सर -आप तो विज्ञानं के प्रोफ़ेसर है फिर आपकी रूचि साहित्य में कैसे हुई ?और रूचि भी ऐसी की आपने पूरी किताब लिख ली और प्रदेश का सर्वोच्च पुरस्कार भी प्राप्त कर लिया |
सर ये तो बहुत बड़ी उपलब्धी है ,बहुत बहुत बधाई हो हमारे चैनल की और से और सारे दर्शको की तरफ से |
प्रोफ़ेसर -हाँ जी हाँ जी धन्यवाद |
शीना -सर आप कुछ प्रकाश डालेगे आपके उपन्यास के विषय में ?
हाँ क्यों नहीं ?
मैंने बाल श्रम के विरोध में इस उपन्यास की रचना की है क्योकि अभी तक इस विषय पर कुछ खास लिखा नहीं गया है और सरकार बहुत प्रसन्न है की मैंने इतनी संवेदनाओ के साथ इस विषय को लोगो तक पहुंचाया |
इतने में फिर मोबाईल बज उठा प्रोफ़ेसर साहब उठकर कोने में चले गये |उधर उनकी पत्नी फोन पर कह रही थी किसी से -हाँ हाँ क्यों नहीं ?भाई आपको भी मंगवा देगे हमारे कृष्णा जैसा लड़का !भई इसका नाम तो नन्हा था,
पर हमने बदलकर कृष्णा रख दिया इसी बहाने दिन भर भगवान का नाम भी ले लिया जायगा |
अच्छा ठीक है पांच हजार में बात तय होगी चलेगा न ?अबकी छुट्टियों में गाँव जायेगे तब जरुर आपके लिए भी गोविंदा ले आवेगे |नमस्ते ...
अरे कृष्णा !जरा एक कप चाय तो ले आना !
सर भारी हो गया है !
प्रोफ़ेसर साहब अभी भी बधाई लेने में व्यस्त है !!!!!!!!!!!!
शीना ने इधर उधर घर में लगे कुछ मेडल ,कुछ शील्ड ,कुछ ट्राफियो को कवर किया और दोपहर की ब्रेकिग न्यूज बना डाली |
एक महान वैज्ञानिक द्वारा रचित साहित्य का अद्वितीय उपन्यास "सवेदनाओ की राख "को प्रदेश के सर्वोच्च पुरस्कार से नवाजा गया है ...........

Sunday, June 06, 2010

"कुछ चटपटा हो जाय "



अभी अभी बारिश(मानसून पूर्व )हो चुकी है |उमस बढती जा रही है अभी पकोड़े खाने का तो मौसम नहीं आया तो चलिए आपको आज सूजी का ढोकला ही खिला देते है जो झटपट बन जाता है |

इंस्टेंट "सूजी का ढोकला "

सामग्री -२५० ग्राम सूजी भुनी हुई, / लीटर छाछ खट्टी वाली ,चार हरी मिर्च ,एक छोटा टुकड़ा अदरक ,एक चाय का चम्मच चीनी ,एक चुटकी हिंग , स्वादानुसार नमक ,आधा चम्मच राई ,एक पाउच इनो पाउडर ,दो बड़े चम्मच तेल |
हल्दी इच्छानुसार डालना हो तो | १० से १२ मीठे नीम की पत्ती |

चटनी की सामग्री ; हरा(गीला) नारियल आधा, चने की दाली भुनी हुई एक बड़ा चम्मच , दो हरी मिर्च ,,एकछोटा टुकड़ा अदरक एक कटोरी ताजा दही नमक स्वादानुसार |
ढोकला बनाने की विधि - अदरक मिर्च दरदरा पीस ले |छाछ में सूजी अदरक मिर्ची का पेस्ट .नमक ,चीनी मिलकर अच्छी तरह फेंट ले |ढोकले के बर्तन में पानी भरकर गर्म होने रख दे |इडली पात्र में भी बना सकते है |जब पानी उबलने लगेतब ढोकले के मिश्रण में इनो मिला दे और बर्तन में या इडली के सांचे में थोडा हाथ से तेल लगा कर मिश्रण उसमे डाल दे और १० मिनट तक पकाए |फिर गैस बंद कर दे |ठन्डे होने पर ढोकला के छोटे -छोटे टुकड़े काट ले चाकू की सहायता से फिर उन्हें छौक दे |
एक कडाही में दो चम्मच तेल डालकर तेल गर्म करें उसमे हिंग ,राई ,मीठा नीम डाल दें और टुकड़े किये हुए ढोकले डाल दें |ऊपर से गीला कसा नारियल और बारीक़ कटी हरी धनिया डाल दें |

चटनी की विधि -नारियल के छोटे टुकड़े कर के या कद्दूकस कर ले उसी में हरी मिर्च, अदरक ,भुनी दाल नमक और दही मिलकर बारीक मिक्सी में पीस लें |

बस तो तैयार है सुबह के नाश्ते में पौष्टिक ढोकला और चटनी |