Sunday, August 29, 2010

"हार सिंगार कि महक "




गुलाब के आलावा और भी
बहुत कुछ है


हर साल
हमेशा


सफेद खिले चांदनी के फूल
कहते है मुझे

हम अनगिनत है
तौले नहीं जा सकते ?

हममे कांटे नहीं
बच्चे भी सहला ले हमे

मेरा भाई है भी तो है कनेर लाल है ,
पीला
है ,नारंगी ही



गूँथ लो हमे साथ साथ
साथ में चाहो तो गुडहल लगा लो
साथ
में चाहो तो तिवड़ा लगा लो
हम
है एक परिवार आते है
साथ
साथ रहते है साथ पर तुम तो गुलाबो के आदि हो गये हो क्या हुआ ? क्या कहा ? खुशबू नहीं है ? इतने में
हर सिंगार महक उठा मै तो हूँ खुशबू के लिए मुझे भी गूँथ दो साथ साथ अकेले मुरझा जाऊंगा मुझे अकेले रहने की आदत नहीं सारे फूल खिलखिला उठे एक ही माला में और मै गुलाबो की आरजू छोड़ महक गई हर सिंगार में |

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