आजकल हर व्यक्ति उपदेशात्मक बाते करने लगा है |दिन रात अध्यात्मिक ?चैनलों का प्रभाव शायद जीवन पर गहरा असर डाल रहा है बोलने में हाँ ?आचरण में तो शून्य प्रतिशत ही है |
"दर्द की शामत "
कौनसे दर्द की कहू ?
मेरे हर दर्द का
एक ही जवाब होता है
तुम्हारे पास
तुम्हारे अपने पाले हुए दर्द है |
"सुख की नींद "
क्या कमी है
तुमको घरमे ,
कभी देखा है?
तुमने ?
फुटपाथ पर कैसी
"सुख की नीद "सोते है
मछरदानी लगाकर लोग ?
Friday, May 06, 2011
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14 टिप्पणियाँ:
क्या कमी है
तुमको घरमे ,
कभी देखा है?
तुमने ?
फुटपाथ पर कैसी
"सुख की नीद "सोते है
मछरदानी लगाकर लोग ?
हूँ ...ज़रूरतें भले ही कम हैं पर इच्छाएं बहुत ज्यादा .......
बिलकुल सहमत हूँ ...उदेशकों को यह नहीं दिखता कि उपदेश देने की बजाय कर्म ज्यादा बोलते हैं ...तभी तो उपदेशकों की बढती फौज के बावजूद समाज और देश में स्थितियां बद से बदतर हुई हैं !
असरदार क्षणिकाएं !
कर्म करना मुश्किल जो है उपदेश देना आसन है सो सब यही करते है | अपने जीवन में उसे लागु कर कौन सबके सामने उदाहरन रखता है शायद कोई भी नहीं |
दर्द सब पाले होते हैं, हटाने की क्षमता घटती जाती है।
हम भी सामने बैठकर उपदेश सुन रहे हैं और समझाने का प्रयत्न भी कर रहे हैं !
शुभकामनायें आपको !
"एक ही जवाब होता है
तुम्हारे पास
तुम्हारे अपने पाले हुए दर्द है |"
सही है...दूसरों को उपदेश देना बहुत आसान है...जब खुद पर गुजरती है...तब ये उपदेश ,याद आने चाहिए
बहुत ही सार्थक क्षणिकाएं
सटीक बातें! अनुकरणीय ! आभार..!
Sab kuchh sahee hote hue bhee man kayee baar udaas ho hee jata hai!
दुनिया एं सबसे आसान है दूसरों को उपदेश देना...सो यही करते हैं लोग.
बोलने और करने में बहुत फर्क होता है. उपदेश देने से पहले अगर कहने वाला यह सोच ले तो शायद ...
एक ही जवाब होता है
तुम्हारे पास
तुम्हारे अपने पाले हुए दर्द है ...
अपना दुःख तो उसी से कहना चाहिए जो हमें समझ सके , वरना पाले रहना ही बेहतर। उपदेश देने वालों से कहने का कोई लाभ नहीं। उदासी बढ़ ही जाती है।
.
जीवन के यथार्थ से सामना करा रही हैं आपकी क्षणिकाएँ ... बहुत लाजवाब ...
"सुख की नींद "
क्या कमी है
तुमको घरमे ,
कभी देखा है?
तुमने ?
फुटपाथ पर कैसी
"सुख की नीद "सोते है
मछरदानी लगाकर लोग ?
बहुत खूब और संदेश भी सार्थक है
धन्यवाद शोभना जी!....आप ने कम शब्दों मे बहुत कुछ कह डाला है, जो जीवन का शाश्वत सत्य है!
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