Thursday, August 11, 2011

कभी कभी ......





बहुत सारे आहार है
फिर भी
निराहार
महसूस होती
जिन्दगी|

बहुत सारे आधार है
फिर भी
निराधार
महसूस होती
जिन्दगी |


जब अटे पड़े है
बाजार
कपड़ो से
फिर भी
जार जार
महसूस होती
जिन्दगी |

समुन्दर के किनारे
शिद्दत से
प्यास को
महसूस
करती है ज़िदगी |



Saturday, August 06, 2011

"सोच और सपने "

सपनो के आकाश में
चिर परिचित
मेहमान
आशाओ के ,
आकाक्षाओ के |

मन के समुंदर में
ढेर सारे मोती
खुशियों के ,
आंसुओ के |

तन के ठिकाने में
एक नई सुबह ,
एक उनींदी शाम
जागती हुई रात |

सपने
मन
तन
जिन्दगी से जुड़े
या कि ?
जिन्दगी
सपनों से
मन से
तन से
जुडी ?