Thursday, September 13, 2012

"और एक अभिलाषा "

 बहुत दिनों बाद कुछ लिख पा  रही हूँ ,इस बिच आप  सभी लोगो को थोडा थोडा ही पढ़ पाई ऐसा लगा मनो बहुत कुछ छुट रहा है कोशिश करुँगी आप सबसे जुडी रह पाऊ ।आपसभी ने मुझे समय समय पर यद् किया अनेकानेक धन्यवाद ।

नदी?
 कब ?कैसे जन्मी ?
अपनी
अनवरत यात्रा में
अनगिनत
 जीवन सींचती रही
अपने ही
 किनारों के  ।

किनारे सम्रद्ध  होते रहे,
समर्थ होते रहे  ।
यूँ तो,
 किनारे मिलते रहे
कभी नाव के सहारे
कभी पुल के माध्यम से
किन्तु,
नदी की अभिलाषा
 पनपती रही
अपने किनारों को,
आपस में जोड़ने की ।
और  ,
नदी
 अपनी ही इस जिद में
सिकुड़ती गई ,सिकुड़ती गई
और
एक दिन
सुनसान रेत
बन गई
नदी  :