Monday, December 30, 2013

पूजा और फल





ईश्वर को याद करने के,उसकी आराधना करने के  हरेक व्यक्ति के अपने तरीके होते है। अपनी माँ को हमेशा पूजा के बजाय पाठ  करते ही देखा क्योकि घर के देवी देवताओ कि पूजा सिर्फ दादाजी ही करते थे घर कि महिला का पूजा घर उसका रसोईघर था ,जब माँ अपने कर्त्तव्यों से निवृत  हुई तो पठन पाठन को ही अपनी पूजा माना, जिसमे उनकी दैनिक प्रातः  संस्कृत में गाई  गई प्रार्थना घर के वातावरण  को मंदिर बना देती।
उनके इस नियम में शुचिता का कोई खास महत्व नहीं था,और जब विदा ली हम सबसे तो नर्मदा किनारे अपना बचपन बिताने वाली माँ ने बस में नर्मदाष्टक बोलकर खंडवा- इदौर के रास्ते में माँ नर्मदा के दर्शन कर अपने को माँ को समर्पित कर दिया फूलो कि तरह। आज एक पारिवारिक कार्यक्रम में इसी तरह से चर्चाये चल रही थी सबकी अपनी अपनी पूजा के बारे में और उसके फल के बारे में, हम मध्यमवर्गीय लोगो कितनी भी गीता पढ़ ले पर अपने कर्म, फल के साथ ही जोड़ते है, मेरी दादी चाय पीती थी उसके छीटे भी भगवान को अर्पण करती थी ,इतने में एक भाभी बोल उठी मेरी माँ सुबह से घूमने निकलती और ढेर सारे  फूल तोड़ कर लाती  है बरसो से ,हम सब कहते- इतने फूल क्यों चढ़ाती हो ?वो कहती -फूलो कि तरह जाउंगी खुशबु बिखेरती बिना किसी को तकलीफ दिए। ईश्वर ने उनके फूल भी स्वीकार कर लिए।

Monday, December 16, 2013

"आ अब लौट चले "

                                                         

एक वैवाहिक समारोह में मेरी एक चचेरी भतीजी मिली   बहुत दिनों बाद ,पारिवारिक कुशल क्षेम पूछने के बाद वह मेरा हाथ पकड़ कर एक तरफ ले गई भीड़ से दूर लेकिन बड़ी स्थिर और शांत चिंत लग रही थी मेरे मन में बड़ी उथल पुथल मच गई थी एक उस मिनट में। वहाँ पड़ी कुर्सी पर बैठकर उसने मुझे कहा- आपने देखा बुआ !उस लाल शर्ट वाले भाई साहब को जो कि मेरी भतीजी के मौसी के लड़के थे ,मैंने कहा उसमे देखना क्या वो तो हर कार्यक्रम  में आते है हमेशा मिलते है समाज में बड़ा नाम है उनका , बहुत सारी  सामाजिक जिम्मेवारिया निभाई है उन्होंने ,सबसे हंसकर मिलते है और फिर तुम्हारे तो भाई ही है न ?उसमे नया क्या है ?
वही  तो आपको बताने जा रही हूँ आज तक वो जब सबसे गले लगाकर मिलते रहते थे आज तो सबको नमस्कार कहकर सबसे मिल रहे है और आज मुझे, मेरे मन में शांति मिल रही है कि जब वो मुझे गले लगाकर मिलते थे तो मुझे उस लिजलिजे अहसास से मुक्ति मिली -आज उन्होंने नमस्कार कहकर मुझसे पूछा और छोटी कैसी हो ?
ओह तो ये बात है,तूने तो पहले कभी बताया नहीं ?
कैसे बताती बुआ वो मेरे भाई जो थे ?
भाई ऐसे होते है क्या ?मैंने कहा
बुआ ;वो कभी कभार ही मिलते थे न ?
लेकिन बुआ कोई बात नहीं आप ज्यादा सोचो नहीं? शायद उन्होंने आमिर खान का प्रोग्राम देखकर ,या कि आज कल जितने तथाकथित बड़े लोगोका जो हश्र हो रहा है ,या कि अपनी हिटलर बीबी कि डांट खाकर अपनी हरकतो को सुधार लिया हो ? देर आये दुरुस्त आये। इतना कहकर भतीजी मुझे हाथ पकड़कर भीड़ में वापिस ले आई फिर भी मैंने पूछा ?तूने मुझे ये सब क्यों बताया जब तेरे पास ही समाधान है या फिर तूने उन्हें उनकी हरकतो के लिए माफ़ कर दिया ?
उसने खाने कि प्लेट हाथ में लेते हुए कहा -बुआ आप ब्लॉग शलाग लिखते  हो तो लोगो को बता सको कि अब लोग सम्भलने ,लगे है और न न न आप चिंता न करो अब ऐसी हरकतो पर  सबक सिखाना भी हम जान गई है
और मैं  प्लेट पकडे -पकडे सोचती और सोचती रह गई इस परिवर्तन के अहसास को।